बारह साल के मिल्टन एरिक्सन को पोलियो हो गया। बीमारी के 10 महीने बाद एक रात उसने डॉक्टर को अपने अभिभावकों से कहते सुना , 'आपका बेटा कल का सूरज नहीं देख सकेगा।' इसके कुछ पलों बाद ही
उसे अपनी माँ की सिसकियाँ सुनाई दी। माँ के दर्द को समझ एरिक्सन ने सोचा की अगर वह कल सुबह तक किसी तरह जीवित रहता है, तो शायद उसकी माँ को काम दुख पहुंचे। इसके बाद उसने रात भर नहीं सोने का निर्णय किया।
सुबह होते ही वह बोला, 'माँ , देखो मई जीवित हु।' उसे जिन्दा देखकर अस्पताल और घर दोनों ही जगह खुसी की लहर दौड़ गई। उन सबको खुश देख कर एरिक्सन ने सोचा कि आज से वह हर रात को जगते हुए काटेगा ताकि जब तक संभव हो वह अगली सुबह सबके चेहरे पर ख़ुशी देख सके। गौरतलब है कि 75 वर्ष की उम्र में एरिक्सन की 1990 में मृत्यु हुई। वह सीमाओं से परे जाकर कुछ हासिल करने जैसी अदभुत इंसानी प्रतिभा पर केन्द्रित पुस्तकों की एक सृंखला पीछे छोड़ गए है।
उसे अपनी माँ की सिसकियाँ सुनाई दी। माँ के दर्द को समझ एरिक्सन ने सोचा की अगर वह कल सुबह तक किसी तरह जीवित रहता है, तो शायद उसकी माँ को काम दुख पहुंचे। इसके बाद उसने रात भर नहीं सोने का निर्णय किया।
सुबह होते ही वह बोला, 'माँ , देखो मई जीवित हु।' उसे जिन्दा देखकर अस्पताल और घर दोनों ही जगह खुसी की लहर दौड़ गई। उन सबको खुश देख कर एरिक्सन ने सोचा कि आज से वह हर रात को जगते हुए काटेगा ताकि जब तक संभव हो वह अगली सुबह सबके चेहरे पर ख़ुशी देख सके। गौरतलब है कि 75 वर्ष की उम्र में एरिक्सन की 1990 में मृत्यु हुई। वह सीमाओं से परे जाकर कुछ हासिल करने जैसी अदभुत इंसानी प्रतिभा पर केन्द्रित पुस्तकों की एक सृंखला पीछे छोड़ गए है।
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